क्या हुआ जब श्री राम को लेना पड़ी माँ भद्रकाली की सहायता | अद्भुत रामायण | What happened when Shri Ram had to take the help of Ma Bhadrakali? Adbhut Ramayana.


हम सभी हिंदुओं के लिए यह बड़े हर्ष का पर्व है की लगभग 500 वर्षों के संघर्ष के पश्चात अयोध्या में भगवान श्री राम का भव्य मंदिर बनने जा रहा है, और हम सब भी बड़े ही सौभाग्यशाली है जो इस शुभ कार्य को अपनी आंखों से पूर्ण होते देख रहे हैं, इसी शुभ अवसर के उपलक्ष में आज हम आपको एक बड़ी ही रोचक कथा सुनाते हैं - 




यह प्रसंग हमें श्री अद्भुत रामायण के अंदर मिलता है जो की ऋषि वाल्मीकि द्वारा ही रचित है, प्रसंग में हमें मुख्य रूप से मां भगवती की महिमा का पता चलता है, यह बात उसे समय की है जब भगवान श्री राम को भी मां भगवती कालिका की सहायता की आवश्यकता पड़ी, 



एक बार की बात है, अयोध्या में भगवान श्री रामचंद्र जी माता जानकी के साथ राज सिंहासन पर विराजमान थे समस्त ऋषिगण एवं संत भगवान श्री रामचंद्र जी की स्तुति कर रहे थे एवं प्रभु को बारंबार प्रणाम करके बार-बार अजानबाहू भगवान श्री राम की भुजाओं की प्रशंसा कर रहे थे एवं इस संदर्भ में वह कहते हैं - हे प्रभु! हे जगदीश्वर! हे परम ब्रह्म परमात्मा! आपकी इन भुजाओ ने समस्त पृथ्वी को निशाचारों से विहीन कर दिया है, एवं आपकी कृपा के कारण हम सभी साधु संत बढे ही आनंद के साथ इस पृथ्वी पर यज्ञ आदि नित्य कर्म कर रहे हैं एवं इसी प्रकार आप हमारी सदैव रक्षा करें।

भगवान रामचंद्र जी को बड़ा ही हर्ष हुआ अपनी भुजाओं को देखते हुए मुस्कुराने लगे तभी उन्हे देखकर मां जानकी ने पूछा प्रभु आप इन भुजाओ को देखकर क्यों मुस्कुरा रहे हैं? तब भगवान रामचंद्र जी बोले - क्या आपने सुना नहीं संतगण किस प्रकार स्तुति कर रहे हैं? वह कहते हैं की इन भुजाओं ने इस पृथ्वी को निशाचारों से विहीन कर दिया है। यह बात सुनकर जानकी जी बोली अभी धरती कहां निशाचारों से विहीन हुई है, अभी तो बहुत से निशाचर जीवित है जैसे इस सभा में देख लीजिए यहां विभीषण जी भी उपस्थित है, प्रभु ने कहा - अरे यह तो हमारे भक्त हैं हमने निशाचर भाव वाले समस्त राक्षसों का नाश कर दिया। तभी जानकी जी बोली - हे प्रभु अभी निशाचारों का वध पूरे तरीके से हुआ नहीं है, अभी तो बहुत से दुष्ट जिंदा है। 

इतना ही कहते अन्य ऋषिगण आकर प्रभु के सामने हाहाकार करने लगे। भगवान ने पूछा- क्या हुआ ऋषिगण कैसे आना हुआ? ऋषिगण बोले - हे प्रभु हमारी रक्षा कीजिए, हे भगवान इस पृथ्वी पर एक और रावण जीवंत हो गया है एवं उसका नाम है सहस्त्र रावण। अपने 10 मुख वाले रावण का तो वध कर दिया परंतु यह एक सहस्त्र मुख एवं सहस्त्र भुजाओ वाला रावण है कृपया इसका भी वध कर हम सभी पर कृपा करें, वह रावण के मारे जाने पर बहुत क्रोधी हो चुका है एवं वह धीरे-धीरे अपना प्रभाव यहां फैला रहा है,एवं वह देवताओं पर चढ़ाई करने की तैयारी कर रहा है! आज आप उसका वध करके हमें उसके आतंक से मुक्त करें, समस्त देवताओं एवं मुनीगणों को भगवान श्री रामचंद्र जी ने तथास्तु बोल युद्ध की तैयारी चालू कर दी, तभी श्री जानकी जी ने श्री रामचंद्र जी से कहा- देखा ना प्रभु हमने कहा था ना अभी निशाचारों का वध पूरी तरीके से हुआ नहीं है अब जाइए एवं युद्ध कीजिए। 




श्री रामचंद्र जी, लक्ष्मण जी, भरत जी एवं हनुमान जी सहित समस्त सेना को लेकर एवं अयोध्या शत्रुघ्न जी को देकर चल पड़े। अब श्री रामचंद्र जी एवं सहस्त्र रावण के मध्य भयंकर युद्ध छेड़ा। एक-एक करके सब योद्धा अपना बल कौशल दिखाने सामने आए। सहस्त्र रावण की सेना तो मारी गई परंतु जैसे ही श्री रामचंद्र जी सहस्त्र रावण को अपने तीर से मार दे तो तुरंत ही उसका एक बूंद रक्त जमीन पर गिरता और उसी के समान एक हजार सहस्त्र रावण और खड़े हो जाते हैं। ऐसे देखते-देखते हैं समस्त रणभूमि सहस्त्र रावणो से भर गई। धीरे-धीरे सभी योद्धाओं का बल कौशल ठंडा पढ़ने लगा, भरत जी व हनुमान जी घबरा गए कि अब तो प्रतिष्ठा पर बात आ गई परंतु यह बात कोई ना जान सका की यह श्री रामचंद्र जी की ही लीला है। 

अब जिस स्थान पर युद्ध हो रहा था, वहां श्री जानकी जी भी पधारी थी एवं शिविर में अपनी सखियों के साथ विराज रही थी। राम जी ने लीला करने के लिए अपने गुरु श्री वशिष्ठ जी से अनुरोध किया - कि कृपया कर इस सहस्त्र रावण को करने का उपाय बताएं। वशिष्ठ जी ने श्री रामचंद्र जी से कहा - हे राघव! आप में और जानकी जी मैं किंचित मात्र भी भेद नहीं है, आप तो परमवीर पराक्रमी परमात्मा है एवं आप परम शक्तिमान है परंतु श्री जानकी जी आपकी शक्ति है अतः आप कृपया करके जानकी जी के पास जाकर इस समस्या का समाधान पाऐ। 




तभी से वशिष्ठ जी ने श्री रामचंद्र जी को उपदेश दिया एवं श्री रामचंद्र जी ने श्री सीता सहस्त्रनाम की रचना की एवं श्री सीता सहस्त्र नाम के द्वारा ही श्री जानकी जी का स्तवन करने लगे। धीरे-धीरे राघव जी के मधुर वाणी शिविर में विराजमान श्री जानकी जी के कानों तक पहुंचने लगी, तब से जानकी जी अपनी सखियों से पूछने लगी यह तो मेरे प्रियतम का शब्द है, जानकी जी ने सखियों से युद्ध के बारे में पूछ कर युद्ध का समाचार सुना एवं उसी क्षण श्री जानकी जी उठी एवं उसी कारण उनके केश खुल गए एवं खुले हुए केशो के साथ में अट्टहास करते हुए मां भगवती कालिका प्रकट हुई व श्री रामचंद्र जी के समक्ष चली गई। रामचंद्र जी मां भगवती को देखकर बोले - हे भगवती आज्ञा करो.. आज्ञा करो... कह कर उनका स्तवन करने लगे, तब माँ भगवती ने श्री रामचंद्र जी को युद्ध करने के लिए बोला। 

अब जब-जब श्री रामचंद्र जी अपने बाणो से सहस्त्र रावण पर वार करते तब उसका रक्त गिरते ही मां भगवती उसे अपने जीभ में स्वीकार कर लेती, और बाकी बचे हुए सहस्त्र रावण को चबा चबाकर, जय सियाराम-जय सियाराम का अट्टहास करते हुए नष्ट कर देती। देखते ही देखते सहस्त्र रावण का वध हो गया, परंतु भगवती शांत नही हो रही थी। सूर्य चंद्रमा की प्रभा भी उनके सामने फीकी पड़ गई सभी देवता सोचने लगे कि अब तो भगवती प्रलय कर देगी। उनके नेत्रों और मुख से ज्वाला प्रकट हो रही थी। तभी भूतभावन भगवान शिव जाकर उनके चरणों में लेट गए, आवेश में उनके चरण जैसे ही भगवान पर पड़े एवं उन्होंने जैसे ही नीचे देखा तो उन्हे दिखा कि उनका दाहिना चरण भगवान शिव के वक्ष स्थल पर पड़ा है उन्होंने देखा कि यह तो मेरे प्राण जीवन धन है और देखते ही देखते वह शांत हो गई। तभी समस्त देवी देवता सहित भगवान ने उनके स्तुति की।

जिस स्थान पर मां भगवती का चरण भगवान शिव के वक्ष स्थल पर पड़ा था आज वह जगह कोलकाता का काली मंदिर ही है। आज भी उनका दर्शन करेंगे तो आप देखेंगे की मां भगवती का दाहिना चरण भगवान शिव पर है। अतः इसी प्रकार सहस्त्र रावण का अंत हुआ एवं भगवान श्री राम की शक्ति महिमा लीला सम्पूर्ण हुई। यह प्रसंग श्री अद्भुत रामायण में से लिया गया है। आशा है आपको यह पसंद आया होगा अतः इसे अपने सभी मित्रों के साथ शेयर जरूर करें।
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