उत्तम भक्त का यही लक्षण है कि अपने आराध्य देव को हर जगह देखें । यदि हम हनुमान जी को मानते हैं कि व हमारे आराध्य देव है तो वही सर्वस्व है दूसरा कोई नहीं है।
हनुमान जी के हृदय में सियाराम जी बैठे हैं तो सियाराम के हृदय में हनुमान जी बैठे हैं, भगवान कह रहे है - मेरे हृदय मे भक्त है और मैं भक्त के हृदय मे। अगर हनुमान जी के ह्रदय मे देखे तो राम जी और अगर राम जी के हृदय में देखो तो हनुमान जी मिलेंगे । मतलब एक ही परम तत्व है चाहे उसे जो कहे, वो लीला के लिए सेवक बना हुआ है और लीला के लिए ही स्वामी बना हुआ है। कभी राम जी हनुमान जी को पूजते हैं कभी हनुमान जी राम जी को। कैसे जैसे राम जी रामेश्वर की पूजा कर रहे ना वही रामेश्वर हनुमान जी बनकर उनके चरण पूज रहे है, कोई दूसरा है क्या ? आप देखा ना हनुमान जी कौन है? स्वयं रुद्र है.. स्वयं शिव है.. रामेश्वर की पूजा स्थापना कौन कर रहा है? - राम जी, तो राम जी के चरणों को कौन लिए हुए ? - शिव जी। हमने सत्य पकड़ लिया।
अब यहां विचार करना है कि - हनुमान जी को पसंद क्या है ? हम जिससे प्यार करते हैं उस पसंद देखते हैं ना, उसकी रुचि देखते हैं ना, हनुमान जी को सियाराम नाम पसंद है, हनुमान जी को सियाराम चरित्र पसंद है, हनुमान चालीसा मे आता है ना - " राम चरित सुनबो रसिया " हनुमान जी रसिक है किस बात के?? " यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकंजलम्
वैवारिपरिपूर्णालोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम् ॥ " हनुमान जी महाराज आंसू बहाते हुए जहां-जहां नाम कीर्तन होता है हरि का, जहां उनके पावन चरित्र का गायन होता है, वहां वहां उपस्थित होते हैं, यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनम तत्र तत्र - वहां वहां विराजमान होते हैं, तो यदि हम हनुमान जी को इष्ट मानते हैं तो उनको सियाराम जी का जस सुनाए, सियाराम जी का नाम सुनाए और सर्वत्र उपस्थिति अपने ही आराध्य देव को देखें किसी भी रूप मे, जैसे राम कृष्ण परमहंस जी ने कृष्ण का दर्शन काली जी में ही किया सब भगवत स्वरूपों का दर्शन अपनी महाकाली में ही करते थे क्योंकि वही कृष्ण वही काली है वही राम जी बने वही सर्वत्र है, दूसरा कोई नहीं। दूसरा जब तक है तब तक अज्ञान है। जो है हर स्वरूप मे वही है दूसरा नहीं। अब ये कि जो नाम रूप पकड़े उसमें आसक्त हो जाए जो नाम रूप पकड़े जिसे कोई राम उपासक कोई श्याम उपासक कोई ब्रह्म उपासक कोई निराकार कोई साकार जहां है पकड़ेजोर से पकड़ ले। एक ही जगह पहुंच जाएगा वो दो नहीं है जैसे - किसी भी घाट में ना आइए आप यमुना जी तो वही है घाटों के नाम अलग-अलग है कि आज हमने जुगल घाट नाया आज हमने विश्राम घाट आज केसी घाट ऐसे घाट कहे जा सकते हैं, लेकिन यमुना जी अवगाहन उन्हीं का हो रहा है ऐसे ही तत्व एक है नाम कुछ भी दे दो लीला में विविध लीलाएं विविध नाम विविध रूप धारण किए हुए हमारे प्रभु विराजमान ऐसे अनन्य भाव से रहिए यह तो बहुत परम मंगलमय है कि अपने आराध्य देव के अनन्य हो जाए पर हनुमान जी की उपासना में एक सावधानी रखनी है कि उनको अधीन करने की बात ना सोचे! शक्ति स्वरूप में नहीं तो इतनी सामर्थ्य नहीं होती है फिर वो मतलब बुद्धि विपरीत दिशा में चली जाएगी समझ पा रहे हैं? आप हनुमान जी को अपने आराध्य देव के रूप में देखा जाए हनुमान जी को उनसे शक्ति ग्रहण करने की बात, शक्ति की सिद्धियों की बात फिर दूसरा कुछ हो जाएगा, फिर वह मार्ग प्रेम वाला नहीं रहेगा नहीं तो हनुमान जी की आराधना का फल सीधा आएगा - राम रसायन तुम्हरे पासा तुम राम रसायन में डूब जाओगे भगवान की प्रेम लक्षणा भक्ति में डूब जाओगे। जब हनुमान जी प्रसन्न होंगे तो व अपनी रति नहीं प्रदान करेंगे अंतिम बात मान लेना व सीताराम जी की रति प्रदान करेंगे, क्योंकि जिस पर प्रसन्न होते हैं वह अपने हृदय की बात दे देते हैं। उनके हृदय में क्या है? - राम जी का प्रेम व उसको प्रदान कर देते हैं और राम जी जिस पर कृपा करते हैं, उसे हनुमान जी के चरणों में निश्चित प्रेम हो जाता है क्योंकि भक्त की कृपा से ही भगवान के प्रेम को प्राप्त किया जाता है और भगवान की कृपा से भक्तों का संग होता है। " बिनु सत्संग विवेक न होयो, राम कृपा बिन सुलभ न सोई " "अब मोय भाव भरोस हनुमंता, बिनु हरि कृपा मिले नहीं संता " जब हनुमान जी मिले तो विभीषण जी को क्या दिखाई दिया राम जी की कृपा, राम जी की कृपा जब होगी तो हनुमान जी के चरणों में प्रेम होगा, हनुमान जी की जब कृपा होगी तो राम लीला का विस्तार हृदय में हो जाएगा, राम रसायन का प्रादुर्भाव हो जाएगा, अनन्य रहो अपने स्वामी के अनन्य रहो, वो सारे सुख विलास प्रकट कर देंगे।
ॐ जय श्री सीताराम हनुमान ॐ